ऑस्ट्रेलिया की ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने सोशल अटेंशन एंड कम्युनिकेशन सर्वीलेंस नाम की एक ऐसी तकनीक इजाद की है, जिसकी मदद से बच्चों में ऑटिज्म का पता जल्दी लगाया जा सकेगा. पहले इसकी पहचान पाँच—छह साल की आयु में ही हो पाती थी, लेकिन नई तकनीक से एक से दो साल की उम्र में भी बच्चों में आॅटिज्म के लक्षणों को पहचाना जा सकेगा.

शोध में पाँच साल तक की आयु वाले करीब तेरह हजार बच्चों को शामिल किया गया था, जिसमें 12 से 24 माह की उम्र वाले बच्चों में करीब 83 फीसदी अनुमान सही साबित हुए. नतीजों से उत्साहित रिसर्चरों का मानना है कि आॅटिज्म का जल्दी पता चल जाने पर बच्चों में स्कूल की उम्र तक जाते जाते बोलने और बाकी समझने की झमता बेहतर की जा सकती है, जिससे उनका आगे का जीवन उतना बेहतर बनाया जा सकता है. क्योंकि उन्हें, देर से पहचाने गए बच्चों के मुकाबले कम सहायता की जरूरत होती है.