पिछले साल 6 नवंबर को मैं पुणे से दिल्ली ट्रेन से जा रहा था कि एक मैसेज फेसबुक पर देखा, श्री वेदप्रकाश कंबोज जी की कुछ बुक फिर से पब्लिश होने वाली हैं, बुक्स के नाम देखे बगैर ही नीलम जासूस कार्यालय को पे टीएम के द्वारा6 बुक्स के लिए पेमेंट कर दिया. घर पहुंच कर सुबोध भारतीय जी से फ़ोन पर बात करने पर पता चला कि उन्होंने श्री वेदप्रकाश कंबोज जी की 6 नायाब बुक्स का सेट निकाला है और आगे वो श्री ओमप्रकाश शर्मा जी, श्री परशुराम शर्मा जी, श्री गुरुदत्त जी की बुक्स भी पब्लिश करने वाले है. सुनकर बहुत अच्छा लगा और खुशी हुई कि पुराने दौर के शानदार लेखकों की बुक्स फिर से पढ़ने को मिलेंगी.
और जब बुक्स हाथ मे आई, तो बुक्स के फ्रंट कवर, पेज क्वालिटी और कलेवर देख कर दिल खुश हो गया और 2 इन 1 विजय पाकिस्तानी कैद में / विद्रोह की आग, ने तो जैसे चमत्कार ही कर दिया, एक ही बुक में दो क़िताबों के मजे. एक अलग की कॉन्सेप्ट रहा ये, जो सबको बहुत पसंद आया.

सुबोध भारतीय जी से बात करके पता चला कि नीलम जासूस कार्यालय के संस्थापक उनके पिताजी स्व. श्री सत्य पाल वार्ष्णेय थे जिन्होंने 1959-1969 तक बुक प्रकाशन का कार्य किया। सबसे अहम बात जो पता चली वो ये थी कि आदरणीय लेखक श्री सुरेंद्र मोहन पाठक और श्री कुमार कश्यप जी का पहला उपन्यास भी नीलम जासूस ने ही प्रकाशित किया था. और उस समय के हर लेखक की बुक्स नीलम जासूस में छपती थी और नीलम जासूस में बुक छपना, लेखक के लिए बड़ी और सम्मान की बात होती थी.
वह बताते हैं कि 1959 में नीलम जासूस की शुरुआत के साथ इससे जुड़ने वाले पहले लेखक थे रत्न प्रकाश शील जिन की नायिका थी नीलम जासूस. लेकिन, दो अंकों के बाद उनसे कुछ अनबन होने की वजह से आगे वह लिख नहीं पाए. शहजादा तबस्सुम ने इसके बाद कुछ अंक लिखे. इसके बाद जब वेद प्रकाश काम्बोज का नीलम में पहला उपन्यास लंगड़ी लड़की छापा तो पूरी तरह से लेखक और पत्रिका लोकप्रिय भी हो गए और नीलम जासूस पत्रिका भी अच्छे से स्थापित हो गई. उस समय इसके 1 अंक की कीमत 75 पैसे होती थी और इसकी छह हजार प्रतियां छपा करती थी जो कि बाद में बढ़कर 15 से 20 हजार हो गईं. नीलम जासूस के स्थापित होने के बाद जब ओम प्रकाश शर्मा जी ने लिखना शुरू किया तो उनके लिए इसी संस्थान एक अलग पत्रिका राजेश के नाम से निकाली जो कि इतने ही लोकप्रिय हुई.
नवंबर 2020 से अब तक नीलम जासूस से श्री वेदप्रकाश कंबोज जी की बदमाशों की बस्ती, अल्फांसे, अनोखा कैदी सहित 21 बुक्स, और श्री ओमप्रकाश शर्मा जी की पिशाच सुंदरी, धड़कन, रतिमन्दिर का रहस्य आदि जैसी 25 कालजयी बुक्स, श्री परशुराम शर्मा जी की भूकंप जैसी किताबें, अभी तक आ चुकी हैं और बहुत सी आने वाली हैं.
बुक्स की प्रिंटिंग, पेजेस की क्वालिटी के अलावा मुझे जिस बात ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो है, इनकी बेहद फ़ास्ट डिलीवरी, जिसने नीलम जासूस की बुक्स को घर घर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वाकई, एक साल से भी कम समय मे 50 से ज्यादा बुक्स पब्लिश करने के लिए सुबोध भारतीय निसंदेह बधाई के पात्र है.
वह बताते हैं कि नीलम जासूस के अधिकांश रीडर्स तो पुराने हैं लेकिन खुशी की बात है फिर 15% से 20% नए और युवा पाठक भी इससे जुड़ रहे हैं और उन्हें पुरानी चीजें पढ़ने पर बेहद आनंद आ रहा है, जिसकी वजह से वे बार-बार उनसे किताबे मंगाते हैं और हकीकत ये है कि हिंदी पल्प फिक्शन की एक—एक किताब अब क्लासिक बन चुकी है. आजकल क्योंकि पहले की तरह पढ़ने वाले नहीं रहे और मनोरंजन के साधन भी बहुत सारे हो गए अब यह किताबें हजारों की संख्या में नहीं सकती बल्कि सैकड़ों में छपती हैं. कई किताबें 100 से भी कम पब्लिश होती हैं लेकिन बिकने पर बार-बार फिर छपती रहती हैं.
श्री भारतीय बताते हैं कि वह स्थापित लेखकों को तो छापेंगे ही साथ ही नए लेखकों को छापने की योजना पर भी काम किया जा रहा है. कुछ लेखकों को हमने नीलम जासूस से जोड़ा भी है, जिनकी किताबें नीलम जासूस से जल्दी ही प्रकाशित होंगी. लेकिन सबसे खास बात यह है कि नीलम जासूस कार्यालय, ऐसे लेखकों को जो पहले घोस्ट राइटिंग करते थे, उनको उनके ओरिजिनल नाम से लॉन्च करना चाहता हैं क्योंकि उनके अंदर प्रतिभा की कोई कमी नहीं है.
गुजिश्ता दौर के जासूसी साहित्य प्रेमी पाठकों की दिली तमन्ना थी कि हिंदी पल्प फ़िक्शन के सुनहरे दौर की जल्द वापसी हो, नीलम जासूस ने यह ख्वाहिश पूरी कर दी है, वह भी पहले से भी अधिक पुरजोर अंदाज में. नीलम जासूस ने पुराने दौर को जैसे फिर से जीवित कर दिया है और हमें पुराने या कहें कि वक्त के साथ गुम हो चुके हिंदी के महान लेखकों की कालजयी बुक्स से फिर एक बार रूबरू करा दिया है.
- संजीव शर्मा, पुणे
सुबोध भारतीय
पाठकों को नीलम जासूस से परिचित कराने के लिए शुक्रिया। हम प्रति वर्ष 100 उपन्यास प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे।
Gagan
Congratulations….Shi mein nyi bottle mein Purani Sarab….Keep it up Subodhji
Atul Sharma
सुबोध जी पुराने क्लासिक उपन्यासों को हम तक दोबारा पहुंचा कर अत्यंत उच्च श्रेणी का कार्य कर रहे हैं। गुणवत्ता लाजवाब है।
BRAJESH KUMAR SHARMA
नीलम जासूस कार्यालय की इस पहल की जितनी सराहना की जाए, कम है। इनके द्वारा मेरे प्रिय लेखक जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों का पुनः प्रकाशन किया जा रहा है, साथ ही श्री काम्बोज जी व अन्य दिग्गज लेखकों के उपन्यास भी प्रकाशित किए जा रहे हैं, जो कि बेहद हर्ष का विषय है। नीलम जासूस की पूरी टीम को हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं 🌹🌹
Anurag Kumar genius
बहुत सुंदर लेख। धन्यवाद सर।
Hadi Hasan
संजीव शर्मा जी ने बहुत सुन्दर लेख लिखा है । पल्प फिक्शन पर उनके विचार नए लेखकों में नई ऊर्जा का संचार करते हैं ।
आभार ।
हादी हसन
विकास नैनवाल
बहुत सुंदर आलेख..
Hadi Hasan
अति सुन्दर
नावेद पत्रकार
नीलम जासूस ने 25 साल बाद उपन्यासों का युग वापिस ले दिया।।।लुप्तप्राय हो चुकी विधा वापिस ज़्यादा रौनक, भव्यता और सुविधा से पाठकों को मिल गयी।।।सुबोध जी खुद भी एक गज़ब के बुद्धिजीवी कर्मठी इंसान हैं और उनमें एक उम्दा उभरता लेखक छुपा है।
ओमप्रकाश, काम्बोज और परशुरामजी के नावेल जो दर्शन दुर्लभ टाइप थे,अब नए कलेवर में मौजूद हैं।
सबसे अनोखा और सराहनीय प्रयोग और अविष्कार इनका है—घोस्ट राइटरों को उनके असली नाम के साथ लेखन मंच देना।।।।
वर्ना, हज़ारो लोगों को तो मालूम ही नही है कि विनय प्रभाकर, मेजर बलवंत,टाइगर आदि तत्कालीन घोस्ट राइटर ही लिखते थे,जिनके नाम तक कोई नही जानता।
पर याद रखें, एक डॉक्टर की दुकान तभी सफल होती है, जब फीस देने वाले मरीज़ आते रहें।इसलिए इनकी किताबें खरीदकर पढ़े।।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
अनिल पुरोहित
नीलम जासूस का पुनर्जन्म एक सुखद अहसास है। गुजरे दौर की लोकप्रिय साहित्य की कालजयी पुस्तकें पढ़ने का मौका मिलेगा। भाई सुबोध जी एक कर्मठ, लगनशील इंसान हैं। हिंदी पल्प फिक्शन की किताबों की आकर्षक छपाई और कवर मनमोहक हैं। लगता है पुराना दौर वापस आ रहा है। नीलम जासूस कार्यालय की पूरी टीम को बधाई और शुभकामनाएं।
Jitender Nath
बहुत सुंदर लेख। सुबोध जी और उनकी टीम बधाई की पात्र हैं