राइट टू रिमूव

‘जो गुजर गई वो कल की बात थी…’ या ‘रात गई, बात गई…’ जैसे जुमले शायद इंटरनेट की दुनिया के लिए नहीं हैं. यहाँ तो ‘कमान से निकला तीर और जुबान से निकली बात…’ वाली कहावत ज्यादा माकूल नजर आती है. क्योंकि इंटरनेट पर की गई आपकी हर पोस्ट, आपके डिलीट करने के बाद भी हमेशा अस्तित्व में बनी रहती है.

इस समस्या को ऐसे समझिए कि आप आज अपने ब्रेकअप की खबर कहीं पोस्ट करते हैं, साथ ही अपने साथी ​के खिलाफ जीभर कर भड़ास भी निकालते हैंं. बाद में आपकी उससे सुलह हो जाती है और सब कुछ नॉर्मल हो जाता है. एक दिन आपका साथी नेट पर आपका नाम डालकर यूं ही सर्च मारता है. ज्यादा संभावना इस बात की है कि उसे आपके द्वारा उसके खिलाफ उगले जहर की पूरी जानकारी मिल जाए और उसका खामियाजा आपको भुगतना पड़ जाए. मशहूर हस्तियों को इस समस्या को कुछ ज्यादा ही झेलना पड़ता है. वे अक्सर भावावेश में कुछ ट्वीट कर देते हैं और बाद में जब भावनाएं शांत हो जाती हैं तो ट्वीट रिमूव कर देते हैं. लेकिन, इसके बावजूद वह ट्वीट नेट पर बना रहता है, जिसका इस्तेमाल उनके दुश्मन या सुरक्षा एजेंसियां उनके खिलाफ कभी भी कर सकती हैं.

और अगर किसी और ने आपके बारे में पोस्ट की हो तो और भी मुश्किल हो जाती है. आप अपनी पोस्ट तो अपने अकाउंट से डिलीट कर सकते हैं, लेकिन जब किसी और ने आप के बारे में कुछ निगेटिव लिखा हो तो उसे सामान्य प्लेटफॉर्म्स से भी नहीं हटवा पाएंगे.

यही वजह है कि दुनिया भर में लोग अपने बारे में दूसरों के द्वारा की गई पोस्ट, फोटो, वीडियो या अपने द्वारा पोस्ट की जाने वाली कंटेंट को हटवाने का अधिकार हासिल करने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं और कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. विभिन्न अदालतों में दर्जनों ऐसी याचिकाएं विचाराधीन हैं, जिनमें अपनी हिस्ट्री रिमूव करवाने को अधिकार दिए जाने की मांग की गई हैं. हालांकि हमारे देश में इस बारे में किसी तरह का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, लेकिन तकनीकी रूप से यह 2017 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस फैसले का परोक्ष उल्लंघन है, जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया गया था.

कई देशों में यह विवाद का मुद्दा है और कुछ देशों ने इस विषय में कानूनी संरक्षण भी दिया है. यूरोप ने आठ साल पहले ही यूजर्स के अपनी जानकारियां हटवाने के अधिकार को , जनरल डाटा प्रोटेक्शन का हिस्सा मानते हुए, इसे अपनी स्वीकृति दे रखी थी. आश्चर्यजनक रूप से इस फैसले के आने के बाद 12 लाख से ज्यादा लोगों ने गूगल से अपनी सूचनाओं से संबंधित करीब 48 लाख लिंक हटाने के लिए अनुरोध भेजे थे. इन लोगों में आम लोग और प्रसिद्ध हस्तियां, दोनों ही शामिल थे.
कौशिक ने अपनी याचिका में गूगल के एक प्रवक्ता का नाम भी लिया है. उस प्रवक्ता का कहना है कि गूगल के पास ऐसी व्यवस्था मौजूद है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति ऐसी जानकारी को चिन्हित कर सकता है जो उसकी निजता का उल्लंघन करती है. प्रवक्ता के मुताबिक इस व्यवस्था में “स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करने वाली सामग्री को हटाने” का प्रावधान भी है. प्रवक्ता ने कहा, “हमारा मकसद हमेशा यह रहा है कि सूचना की सर्वोच्च सुलभता का समर्थन किया जाए.”

2014 में यूरोपीय संघ का फैसला आने के बाद गूगल के पास लोगों द्वारा सूचनाएं हटाने के 12 लाख से ज्यादा आग्रह आए थे. इन आग्रहों में 48 लाख लिंक थे जो राजनेताओं और मशहूर हस्तियों से लेकर आम लोगों तक ने भेजे थे. अभी भारत में डाटा प्रोटेक्शन बिल पर काम जारी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्दी ही यह एक कानून का रूप ले लेगा.

  • संदीप अग्रवाल

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