गुवाहाटी में नीलांचल पहाड़ियों पर स्थित कामाख्या देवी मंदिर शहर का सबसे प्रसिद्ध स्थल है. यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है और 51 शक्तिपीठों में से एक है जो सबसे पुराने शक्तिपीठों में गिना जाता है. मंदिर परिसर में कई अलग-अलग मंदिर हैं, जो दस महाविद्याओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. यह मंदिर सिर्फ तांत्रिक उपासकों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश से हजारों हिंदू श्रद्धालुओं को भी आकर्षित करता है.

स्वयं प्रकट हुई शक्ति
इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां एक प्राकृतिक चट्टान की दरार को देवी का रूप माना जाता है. भक्त इसे लाल साड़ी से ढकते हैं. यह चट्टान लगभग 10 इंच गहरी दरार के रूप में मौजूद है, जिसमें हमेशा एक भूमिगत जलस्रोत से पानी आता रहता है. इसे देवी का प्रतीक मानकर रेशमी साड़ी और ताजे फूलों से सजाया जाता है.

108 महाशक्ति पीठों में से एक
108 शक्तिपीठों में कामाख्या मंदिर सबसे पुराना शक्तिपीठ है. इसका इतिहास 8वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है. 16वीं शताब्दी में, कूच बिहार के राजा नरा नारायण ने इसे दोबारा बनवाया. इसके बाद भी कई बार इसकी मरम्मत की गई, जिसमें राजा रुद्र सिंह के पुत्र शिवा सिंह ने प्रमुख भूमिका निभाई.
मंदिर में कोई मूर्ति नहीं
इस मंदिर में कोई देवी दुर्गा की मूर्ति या प्रतिमा नहीं है. इसके बजाय, यहां एक फूलों से भरा जलकुंड (जलाशय) है, जो हमेशा खुला रहता है. इस कुंड का पानी निरंतर बहता रहता है, लेकिन इसकी दैवीय ऊर्जा कभी समाप्त नहीं होती.

तंत्र साधना और काला जादू के लिए प्रसिद्ध
कामाख्या मंदिर तंत्र-मंत्र और तांत्रिक विद्या के लिए भी प्रसिद्ध है. हर साल यहां अंबुबाची मेले में हजारों तांत्रिक और रहस्यवादी आते हैं. इस मेले में कुछ लोग अपनी साधनाओं का प्रदर्शन करते हैं, जैसे घंटों एक पैर पर खड़े रहना या सिर को जमीन में गाड़कर तपस्या करना.