बांधवगढ़ में शावकों के साथ नजर आ रहीं बाघिन, आखिर बच्चों को कैसे सिखाते हैं शिकार के गुर
उमरिया : जिले का बांधवगढ़ एक ऐसा टाइगर रिजर्व है, जहां ज्यादातर पर्यटक सिर्फ और सिर्फ इसलिए आते हैं, कि यहां पर सफारी के दौरान बड़ी आसानी से बाघों के दीदार हो जाते हैं, क्योंकि पूरे मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ही ऐसा है, जहां बाघों की संख्या बहुत ज्यादा है. पिछले कुछ महीने से देखने को मिल रहा है कि बांधवगढ़ में बाघिन के साथ शावक भी नजर आ रहे हैं. ऐसे कई वीडियो वायरल भी हुए हैं. पर्यटकों ने ही इस तरह के वीडियो बनाकर वायरल किए हैं. जिसमें बाघिन अपने शावकों के साथ जंगल में भ्रमण कर रही हैं. कहा जा रहा है कि बाघिन अपने बच्चों को शिकार के गुर सिख रही है, साथ ही जंगल के नियम कायदे बता रही है.
बाघिन के बच्चों के साथ वीडियो वायरल
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में अभी हाल ही में मार्च महीने में कई ऐसे वीडियो वायरल हुए, जिसमें बाघिन अपने शावकों के साथ नजर आई. कुछ दिन पहले बफर वाली बाघिन अपने शावकों के साथ नजर आई थी, तो इसके बाद सिद्ध बाबा बाघिन भी अपने शावकों के साथ दिखाई दी थी. यह सभी वीडियो जमकर वायरल भी हुए थे. जिसके बाद से ही इन वीडियो को देखने वालों का यही मानना है कि यह बाघिन अब अपने शावकों को जंगल के नियम कायदे और शिकार करने के तरीके सिखा रही है. इसीलिए आजकल ये बाघिन भी खूब अपने शावकों के साथ नजर आ रही है.
शिकार के लिए ऐसे देती है ट्रेनिंग
आखिर एक बाघिन अपने बच्चों को शिकार के लिए कैसे ट्रेंड करती है, तो आपको बता दें कि बाघिन भी बहुत नियम कायदों और अनुशासन के साथ अपने बच्चों को इसकी ट्रेनिंग देती है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं, "पैदा होने से 3 महीने तक तो एक बाघिन जो मां होती है, अपने बच्चों को बाहर ही नहीं लाती है. बहुत सुरक्षात्मक तरीके से उसकी केयर करती है और सुरक्षा में कोई भी ऐसी कमजोरी नहीं रहती है, जिससे ये बच्चे शिकारी के हाथ लग जाए. उस दौरान बाघिन बहुत खूंखार और अटैकिंग मोड में रहती है. बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है.
लगभग 3 महीने जब हो जाते हैं, उसके बाद वो अपने बच्चों को एक्टिविटी करना सिखाना शुरू करती है. 6 महीने तक तो वह खुद ही शिकार करके लाएगी और उसे छिपा कर रखेगी. बच्चों को बुलाकर उन्हें शिकार खिलाएगी या शिकार के पास वहां पर लेकर जाएगी. लगभग 6 महीने के बाद 1 साल तक शिकार करने के लिए शावकों को साथ में लेकर जाने लगती है. इस दौरान बाघिन उन्हें शिकार करने के जरूरी कौशल सिखाती है. जैसे शिकार का चतुरता और सतर्कता के साथ पीछा करना, झपट्टा मारना, फुर्ती से शिकार के ऊपर चढ़ना जैसे-जैसे शावक इस दौरान बड़े और तंदुरुस्त होते जाते हैं. वो इसका सतत अभ्यास करते रहते हैं. बाघिन उन्हें ले जाकर उनके सामने शिकार करती है.
शावक उस एक्टिविटी को साथ में करते हैं और शिकार करने की ट्रेनिंग लगातार लेते रहते हैं. इस 6 महीने से 1 साल की अवधि में बाघिन बच्चों के सामने ही अधिकतर शिकार करती है. जब बच्चे भी साथ होते हैं और जब लगभग एक साल के ऊपर का वक्त हो जाता है, शावक मजबूत हो जाते हैं. तो बाघिन शिकार के लिए बच्चों को आगे कर देती है. वो खुद पीछे रहती है, ज्यादातर केस में इस अवधि में शावकों को ही शिकार करना होता है. बाघिन सिर्फ सपोर्ट के तौर पर रहती है या फिर कहीं बैठ जाती है. इस तरह से शावक धीरे-धीरे प्रकृति के अनुरूप ढल जाते हैं. एक अच्छे शिकारी बाघ की तरह अपने भोजन के लिए शिकार करना सीख जाते हैं. धीरे-धीरे प्रैक्टिस कंटिन्यू प्रक्रिया में होता रहता है.
बाघिन को ही रखना होता है बच्चों का ख्याल
वन्य प्राणी विशेषज्ञों की माने तो बाघों की दुनिया भी बिल्कुल अलग होती है. बाघ के बच्चों के संपूर्ण परवरिश की जिम्मेदारी शिकार से लेकर जंगल के नियम कायदे तक सिखाने की जिम्मेदारी मां बाघिन पर ही होता है. बच्चों को किसी भी खतरे से बचाने की जिम्मेदारी, ये सब कुछ बाघिन पर होता है. एक तरह से कहें तो मां बाघिन ही इनकी लीडर होती है. बाघ शांतिप्रिय प्राणी होता है, वो अकेले ही अपनी टेरिटरी में इधर-उधर भटकने लगता है. मादा बाघिन को ही शावक पैदा होने इन बच्चों की देखभाल करनी होती है.
बाघिन अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए बहुत कुछ करती है. अगर उसे थोड़ा भी महसूस होता है कि वो क्षेत्र सुरक्षित नहीं है, तो वो सुरक्षित जगह पर अपने बच्चों को लेकर चली जाती है. अपनी नजरों से बहुत कम समय के लिए ही बच्चों को ओझल होने देती है और सुरक्षित स्थान पर रखती है. शावकों के बढ़ती उम्र के साथ ही बाघिन अपने बच्चों को जंगल के नियम कायदे सिखा देती है. लगभग डेढ़ से 2 साल की उम्र का होने के बाद वो जंगल में आजादी के साथ घूमने लगता है.