बेंगलुरु । कर्नाटक में आगामी निकाय चुनावों से पहले कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। कर्नाटक में सत्तारूढ़ भाजपा पर आरोप है कि वह एक एनजीओ की मदद से बेंगलुरु के मतदाताओं के जाति डेटा और अन्य विवरण इकट्ठा कर रही है, ताकि वह आगामी निकाय चुनावों के लिए उनका इस्तेमाल कर सके, अपने अभियान को एक क्षेत्र की जनसांख्यिकी के अनुरूप बना सके और चुनिंदा नाम लिस्ट से हटा सके। विपक्षी दल का कहना है कि 6 लाख वास्तविक मतदाताओं के नाम इसके बाद सूची से मिटा दिए गए हैं। वहीं दूसरी ओर शहर के नागरिक निकाय, बृहत बेंगलुरु महानगर पालिके द्वारा इस दावे का खंडन किया गया है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक बेंगलुरु में 79 लाख मतदाता हैं। कांग्रेस विधायक रिजवान अरशद ने कहा कि कृष्णप्पा रविकुमार नाम के शख्स ने 2013 में एनजीओ को रजिस्टर करवाया और चिलुमे एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी भी चलाते हैं जो भाजपा के लिए चुनाव संबंधी काम करती है। 
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि एनजीओ ने बिना कोई फीस लिए अभियान चलाया। जिसके बाद कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज कुमार मीणा ने जांच के आदेश दिए हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने किसी भी गलत काम से इनकार किया है और कांग्रेस पर कुछ महीनों में होने वाले निकाय चुनावों और साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले आइडिया की कमी होने का आरोप लगाया है। विशेष नागरिक आयुक्त एस. रंगप्पा ने कहा कि एक भी मतदाता का नाम धोखे से नहीं हटाया गया है और जो कुछ भी हटाया गया है वह सामान्य परिस्थितियों जैसे नामों के दोहराव या मतदाताओं की मृत्यु के कारण हुआ है। 
वहीं सीएम बोम्मई ने कहा कि एनजीओ को व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और चुनावी भागीदारी के लिए काम पर रखा गया था। मतदाताओं को जागरूक बनाने और मतदाता सूची को संशोधित करने के लिए चुनाव आयोग की देखरेख में देश भर में नियमित रूप से डोर-टू-डोर अभियान चलाया जाता है। 2018 से पहले भी ऐसा होता रहा है, जिसका मतलब है कि पिछली कांग्रेस सरकारों ने भी ऐसा किया था।