पेशेवर कामयाबी का सबसे खराब बायोप्रॉडक्‍ट यही है कि यह आपको उन सब चीजों से दूर कर देती है, जो आपको सबसे ज्‍यादा खुशी देती हैं. मेरे मामले में यह चीज किताबें पढ़ना है. जब भी वक्‍त मिलता है, एक नई किताब शुरू कर देता हूँ और किश्‍तों में ही सही, उसे पूरा जरूर करता हूँ. हालांकि इसमें कई बार नुकसान यह होता है कि जिन किताबों को एक फिल्‍म की तरह पढ़ना चाहिए, उन्‍हें एक सीरियल या वेबसीरीज की तरह पढ़ना पड़ता है और यह मजबूरी कई किताबों का लुत्‍फ उठाने की यात्रा में बार-बार बाधा बनती है. कसारी मसारी भी मेरी इसी मजबूरी का शिकार हुई और जब मैंने इसे खत्‍म किया तो लगा कि अगर इसे एक ही बार में पढ़ा होता तो इसकी गहराई में ज्‍यादा नीचे तक जाया जा सकता था.

लेकिन, सच तो यह भी है कि किस्‍तों में ही सही,  कसारी मसारी एक बेहतरीन किताब ही साबित हुई. किताब की कहानी के बारे में ज्‍यादा विस्‍तार से बताकर मैं स्‍पॉइलर नहीं बनूँगा, लेकिन बतौर जिगर मुरादाबादी, बस इतना समझ लीजे कि एक आग का दरिया है, डूबकर जाना है. आप एक बार इसमें उतरे तो भले ही कितनी तपिश महसूस हो, आपका मन इससे बाहर आने को नहीं करेगा. कुख्‍यात माफिया अतीक अंसारी के जीवन से इन्‍सपायर्ड कसारी मसारी के साथ अच्‍छी बात यह है कि यह उसकी जीवनी नहीं है, बल्कि उन सब किरदारों की कहानी है, जो नायक या खलनायक, बाबर कुरैशी के निर्माण से विध्‍वंस तक की प्रक्रिया में, जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे किसी न किसी रूप में निमित्‍त बने हैं.  संसार के रंगमंच पर किसी अदृश्‍य शक्ति के हाथों से बंधी डोर से संचालित हर कठपुतली का एक स्‍वतंत्र अस्‍तित्‍व है, एक स्‍पष्‍ट लक्ष्‍य है,  जो अलग-अलग रास्‍ता चुनने के बावजूद बाबर कुरैशी पर आकर पूरा होता है.

सूबे के मुख्‍यमंत्री, पुलिस के आला अधिकारी, खबरिया चैनल के रिपोर्टर, रंगरूट शूटर, अलग-अलग गिरोहों के सरगना,  अत्‍याचार के शिकार लोग... पूरी किताब में छोटे-बड़े पचास के करीब किरदार होंगे, लेकिन लेखक मनोज राजन त्रिपाठी ने हर किरदार को एक अलग शख्सियत और अहमियत देकर इस भीड़ में गुम होने से बचाए रखा है, जो कि काबिले तारीफ है. तारीफ तो त्रिपाठी जी की इस बात के लिए भी करनी चाहिए कि इसमें राजनीति,  मीडिया, पुलिस और माफिया... इन सबके बीच समांतर चलने वाले सौहार्द और द्वेष के बीच भी उन्‍होंने जबर्दस्‍त संतुलन बनाकर रखा है. इसका ताना-बाना उलझाता नहीं, बल्कि चौंकाता है और अहसास कराता है कि सच की पहचान इतनी मुश्किल भी नहीं है, जितना कि हम समझते हैं. और यह भी कि सच न तो हमेशा वह होता है, जो हमें बताया जाता है और न ही वो, जिसे हम खुद खोजते हें. सच सिर्फ सच होता है, बस उसके संस्‍करण अलग-अलग होते हैं, जिनमें से हर व्‍यक्ति अपनी सहूलियत और पसंद के हिसाब से एक चुन लेता है. इन्‍हीं में एक और सच, कसारी मसारी यह भी स्‍थापित करती है कि एक आततायी को भले ही आप किसी एक धर्म से जोड़कर उसका समर्थन या विरोध करें, लेकिन उसका सिर्फ एक ही धर्म होता है-अत्‍याचार और शोषण.

कुल मिलाकर कसारी मसारी एक बहुत ही रोचक और रोंगटे खड़े कर देने वाली किताब है, जिसमें आप नफरत करने के लिए भले ही कुछ किरदार चुन सकते हैं, लेकिन दिल से किसी का समर्थन करने का आपका दिल शायद ही करे. क्‍योंकि इसमें कोई भी किरदार दूध का धुला नहीं है. तब भी, जब वह अधर्म के खिलाफ खड़ा होता है. जीतने के लिए उसे भी कोई न कोई गलत रास्‍ता चुनना ही पड़ता है. पर, शायद बदलती दुनिया का तकाजा भी यही है कि जब सब कुछ गलत हो तो कम गलत को चुनने में कोई अपराधबोध नहीं होना चाहिए.

कसारी मसारी कहानी पर किरदारों की जीत की किताब है, जो इसे एक रेयर और रिकमंडेबल नोवेल बनाती है.

: संदीप अग्रवाल  

पुस्‍तक: कसारी मसारी

लेखक: मनोज राजन त्रिपाठी

प्रकाशक: एका (वेस्‍टलैंड बुक्‍स का एक इम्प्रिंट), चेन्‍नई