मप्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की कवायद शुरू
भोपाल । भाजपा की शनिवार को दिल्ली में बड़ी बैठक हुई। बैठक में मप्र से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा शामिल हुए। बैठक में संगठन चुनाव और सदस्यता अभियान को लेकर चर्चा हुई। सूत्रों का कहना है कि इस दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी चर्चा हुई।
मप्र में रक्षा बंधन के बाद भाजपा संगठन चुनाव की गतिविधियां शुरू होने की संभावना है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता प्रदेश अध्यक्ष बनने की दौड़ में हैं। इसी संदर्भ में भाजपा हाईकमान ने दिल्ली में बैठक की। बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष के अलावा अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद रहेे। दिल्ली बैठक के बाद 21 अगस्त को भोपाल में भी संगठन की बैठक बुलाई गई है। इसमें सदस्यता अभियान को लेकर विचार विमर्श किया जाएगा। पार्टी पदाधिकारियों को सदस्यता संबंधी टारगेट सौंपे जाएंगे। इनके साथ ही सक्रिय सदस्य भी बनाए जाएंगे। बैठक में चुनाव की औपचारिक भी ऐलान होगा। सदस्यता अभियान के बाद बूथ समिति और मंडल अध्यक्षों के चुनाव होंगे।
विधानसभा और लोकसभा चुनाव के कारण भाजपा ने अपने संगठन चुनाव आगे बढ़ा दिए थे। पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने फरवरी 2020 में पार्टी की कमान संभाली थी। चुनाव से कार्यकाल बढ़ा दिया था। अब वीडी के उत्तराधिकारी की तलाश है। भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए भाजपा के करीब आधा दर्जन नेता कतार में लगे हैं। इनमें पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह, डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल, पूर्व गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, पूर्व मंत्री अरविंद भदौरिया प्रयासरत हैं। पहले आदिवासी वर्ग का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की चर्चाएं थीं। लेकिन पहली बार केंद्र सरकार में दो आदिवासी सांसदों को मंत्री बनाए जाने के बाद यह संभावना कम ही है।
इस बात की भी संभावना है कि उन्हें इस पद पर रिपीट किया जाए। हालांकि, भाजपा में ऐसा पहले हुआ नहीं है कि लगातार दो टर्म किसी को अध्यक्ष बनाया गया हो। सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी और नरेंद्र सिंह ये तीन ऐसे नेता रहे हैं, जिन्होंने दो बार प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाली है, मगर उनके दो टर्म के बीच कुछ सालों का अंतर रहा है। वहीं जानकार कहते हैं कि ऐसी स्थिति में किसी नए चेहरे को जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। यदि भाजपा जातीय समीकरण का फॉर्मूला अप्लाय करती है तो केंद्रीय कैबिनेट में एससी-एसटी और ओबीसी चेहरे शामिल किए जा चुके हैं। प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर ओबीसी चेहरा है। विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी क्षत्रिय समुदाय से आने वाले नरेंद्र सिंह तोमर को सौंपी गई है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण वर्ग से हो सकता है। यदि भाजपा जातीय समीकरण से इतर क्षेत्रीय समीकरण को तवज्जो देगी तो प्रदेश अध्यक्ष विंध्य क्षेत्र से किसी को बनाया जा सकता है। क्योंकि केंद्रीय कैबिनेट में इस क्षेत्र से किसी सांसद को मौका नहीं मिला है। वहीं, इन दोनों समीकरणों के इतर वोट बैंक को साधने की दृष्टि से किसी आदिवासी चेहरे को भी मौका मिल सकता है। एक्सपर्ट ये भी कहते हैं कि भाजपा में लंबे समय से किसी सांसद को ही अध्यक्ष बनने का मौका मिल रहा है। ऐसे में किसी सांसद को ये जिम्मेदारी मिल सकती है।
भाजपा सूत्रों का कहना है कि अगर जातीय फॉर्मूले के आधार पर प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति होती है तो पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा फिट बैठते हैं। वे ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। दूसरी तरफ न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक के तौर पर उन्होंने अपनी संगठन क्षमता को साबित किया है। नरोत्तम मिश्रा खुद दावा करते हैं कि 1 जनवरी से 31 मई तक भाजपा की न्यू जॉइनिंग टोली की वजह से कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से करीब 4 लाख कार्यकर्ताओं ने भाजपा जॉइन की है। वहीं गोपाल भार्गव भी एक ऑप्शन हो सकते हैं। वे 9 बार के विधायक हैं। इस बार उन्हें मंत्रिमंडल में भी जगह नहीं मिली। इस लिहाज से उनके नाम पर विचार किया जा सकता है। मगर, भाजपा जिस तरह से संगठन में युवा चेहरों को तवज्जो दे रही है उस क्राइटेरिया में वे फिट नहीं बैठते। भले ही वे लंबे समय तक सत्ता में रहे, लेकिन संगठन में काम करने का उन्हें अनुभव नहीं है। इनके अलावा मंडला सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते पर भी दांव लगाया जा सकता है। कुलस्ते भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। आदिवासी वर्ग से आते हैं। उन्हें इस बार कैबिनेट में भी शामिल नहीं किया गया है। वे भाजपा के एसटी मोर्चे की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। ऐसे में उन्हें संगठन में काम करने का भी अनुभव है। हालांकि, भाजपा पहले ही आदिवासियों को प्रतिनिधित्व दे चुकी है, लेकिन सांसद को पद देने के फॉर्मूले में वे फिट बैठते हैं।