आज हम सभी बढ़ती गर्मी और लू के थपेड़ों के असर को महसूस कर रहे हैं। अक्सर हम इससे होने वाले शारीरिक नुकसान जैसे लू लगना, डिहाइड्रेशन या थकावट की चर्चा करते हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य पर इसके पड़ने वाले असर पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है।

हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, मानसिक समस्याओं का खतरा भी बढ़ता है। सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि गर्मी बढ़ने पर आत्महत्या के मामलों में भी बढ़ोतरी देखी गई है। इसके अलावा, गर्मी के दिनों में मानसिक रोगों के कारण अस्पताल में भर्ती होने और आपातकालीन सेवाओं के इस्तेमाल के मामले भी बढ़ते हैं।

गर्मी का असर केवल गंभीर मानसिक बीमारियों वाले लोगों पर नहीं पड़ता, बल्कि आम इंसान भी चिड़चिड़ापन, बेचैनी, नींद में कमी और उदासी जैसी समस्याओं का सामना कर सकता है। बुजुर्ग, मानसिक रोग से जूझ रहे लोग और नशे की आदत वाले लोग गर्मी के प्रभाव से ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।

दिक्कत यह है कि अब तक हमारे गर्मी से बचाव के उपाय मुख्य रूप से शारीरिक स्वास्थ्य पर केंद्रित रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कोई खास तैयारी नहीं की जाती। समय आ गया है कि जब भी लू की चेतावनी दी जाए, तब मानसिक स्वास्थ्य पर भी उतना ही ध्यान दिया जाए। जरूरी है कि लोग खुद भी सतर्क रहें — गर्मी के दिनों में भरपूर पानी पिएं, धूप से बचें, घर को ठंडा रखें, और मानसिक रूप से खुद को हल्का और शांत बनाए रखने की कोशिश करें।

सरकार और समाज को भी चाहिए कि वे गर्मी के मौसम में मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ाएँ और जरूरतमंदों तक मदद पहुँचाएँ। मौसम का तापमान हमारे मन की हालत को भी गर्म कर सकता है — यह सच्चाई अब नजरअंदाज नहीं की जानी चाहिए। 

( Image Courtesy: stux/pixabay)

- डॉ. हरिकिशन ममतानी 

(MD Psychiatry (NIMHANS Bengaluru), MRCPsych (UK)
Consultant Neuropsychiatrist, Manoved, Nagpur)