आजम के बिना रामपुर में नहीं दिख रही चुनावी 'धार'!
रामपुर। रामपुर में जेल के पीछे घेर मीर बाज खां क्षेत्र में चौड़ी सड़क से लगी इस खास गली की पूरे जिले में विशिष्ट पहचान है, इसलिए कि इसमें पूर्व मंत्री और सांसद रहे सपा के राष्ट्रीय महासचिव आजम खान का घर है।
पिछले चुनाव तक न केवल रामपुर बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छोटे-बड़े सपाई नेताओं का जमावड़ा गली से लेकर बाहर सड़क तक रहता था, लेकिन इन दिनों सन्नाटा पसरा है।
गली में जगमगाहट तो है, लेकिन चहल-पहल नहीं। आजम के ही रामपुर पब्लिक स्कूल के पास मिले रफीक चुनावी माहौल के प्रश्न पर पलटकर सवाल करते हैं- 'क्या आपको कहीं दिखाई दे रहा है कि चार दिन बाद यहां वोट पड़ने वाले हैं?'
फिर मायूसी भरे सुर में कहते हैं कि जब न आजम साहब और न ही नवाब खानदान से कोई चुनाव मैदान में है तब रौनक कैसे दिखेगी?
कांग्रेस का रहा दबदबा
मौलाना अबुल कलाम आजाद से लेकर नवाब खानदान की बेगम नूर बानो, आजम खां और अभिनेत्री जयाप्रदा तक को संसद तक भेजने वाली रामपुर सीट पर वैसे तो आजादी के बाद से कांग्रेस का ही दबदबा रहा है, लेकिन सपा और भाजपा भी जीत दर्ज कराई है।
इस बार जैसी खामोशी पहले कभी नहीं रही। तकरीबन 52 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली रामपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने घनश्याम सिंह लोधी पर दांव लगाया है।
आजम की असहमति के बावजूद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को प्रत्याशी बनाया है। आजम बनाम अखिलेश से सपा समर्थकों में दो फाड़ हो गए हैं, जिसका असर देखने को मिल सकता है। बसपा के उम्मीदवार जीशान खां को लगता है कि अखिलेश से नाराज मुस्लिम समाज का साथ मिलने से 'हाथी' की सेहत सुधरेगी।
आजम खेमे में नाराजगी
मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को रातोंरात टिकट देने पर आजम खेमे के नेताओं की नाराजगी इस कदर बढ़ती दिख रही है कि सपा के ज्यादातर स्थानीय नेता तुर्क बिरादरी के नदवी के साथ प्रचार करते नहीं दिख रहे। सपा जिलाध्यक्ष रहे वीरेंद्र गोयल के आवास में पार्टी का कार्यालय खुला है, लेकिन वह खुद कहते फिर रहे हैं कि जिसे आजम का समर्थन न हो, उसे हम तो नहीं लड़ाएंगे। ऐसे में भाजपा को हराने के लिए बसपा का साथ देंगे।
आजम के समर्थकों के असहयोग के बीच मोहिबुल्लाह अपनों के साथ क्षेत्र में निकल तो रहे हैं, लेकिन 'साइकिल' को लेकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी न स्वाभाविक हलचल दिख रही है और न ही किसी तरह की सियासी गर्माहट।
मिस्टनगंज के कारोबारी प्रमोद कुमार स्वीकारते हैं कि चुनाव ठंडा इसलिए दिख रहा है क्योंकि आजम हैं नहीं और सरकार योगी की है। आजम होते तो विरोधियों पर तीखे कटाक्ष और हंगामा करते, फिर उसकी चौतरफा चर्चा होती ही।
बदल गई हैं परिस्थितियां
गौरतलब है कि पांच वर्ष पहले चुनाव में आजम ने अपनी सभाओं में पीएम मोदी को मुसलमानों का हत्यारा तक बताया था। दुनियाभर में मशहूर रामपुरी चाकुओं के कारोबारी शहजाद कहते हैं कि सपा के मौलाना को जानता ही कौन है? आजम होते तो हम सब उन्हीं के साथ होते, लेकिन बदली परिस्थिति में जरूरी नहीं कि मुस्लिम 'साइकिल' को ही वोट दें।
आजम की सदस्यता जाने पर उपचुनाव में जीते भाजपा विधायक आकाश सक्सेना द्वारा ज्वाला नगर में कराए जा रहे कार्यों का जिक्र करते हुए उम्मीद करते हैं कि भाजपा के जीतने पर पूरे क्षेत्र में काम तो होंगे। भैंस खास के पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले आशियाने को दिखाते हुए अमीर अहमद कहते हैं कि जिसने बीड़ी बनाने वाले मेरे गरीब परिवार को पक्की छत दी है, उसे चुनाव में कैसे भूल सकते हैं?
धीरेंद्र कुमार इस पर अविश्वास जताते हुए कहते हैं कि 18,500 में से 14,500 मकान मुसलमानों को मिले जरूर हैं, लेकिन नतीजे आने पर आप खुद देख लीजिएगा कि कितने मोदी के साथ खड़े हुए और कितने अपनी बिरादरी वाली पार्टी के साथ? वाल्मीकि समाज से गिरधारी लाल, बहनजी को वोट देने के सवाल पर कहते हैं कि अब उनका बचा ही क्या है? भाजपा के सांसद व विधायक से भी नाराजगी जताते हैं, लेकिन तारीफ मोदी की करते हैं।
केन्द्र की योजनाओं का असर
मिलक क्षेत्र के दवा कारोबारी सरदार मंदीप सिंह कहते हैं कि यहां तो सभी मोदी के मुरीद हैं। कूप व मिस्बी गांव की कमलावती और रामवती बताती हैं कि पहले 'हाथी' और अब 'कमल' का बटन दबाती हैं। धमौरा के विशाल कहते हैं कि बसपा तो अब खत्म है। नियामतनगर के दर्शन सिंह मुफ्त का राशन मिलने पर मोदी से तो खुश हैं, लेकिन कोटेदारों की घटतौली से नाराज।
पहली बार वोट डालने वाले प्रमोद लोधी को मोदी अच्छे लगते हैं। भूनापुर निवासी नईम अहमद सपा प्रत्याशी का नाम नहीं जानते, लेकिन कहते हैं कि 'साइकिल' से ही उनके समाज का हित है। मिलक खानम के रहने वाले महेन्द्र सागर सरकारी योजनाओं के मिले लाभ गिनाते हुए कहते हैं कि 2022 में तो वोट बहनजी को दिया था, लेकिन अब मोदीजी हैं।
नूरबानो बोलीं- गुस्सा है, अफसोस नहीं
नवाब खानदान से दो बार सांसद रहीं लगभग 85 वर्षीय बेगम नूरबानो इस बार रामपुर से चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन आईएनडीआईए से सीट कांग्रेस के बजाय सपा के हिस्से में जाने से वह मैदान में नहीं उतर सकीं। वह कहती है कि चुनाव न लड़ पाने पर अफसोस नहीं, बल्कि उन्हें गुस्सा है।
नूरबानो बताती हैं कि किस तरह से आजम खान को अपने घर का बच्चा समझकर उनके मियां नवाब जुल्फिकार अली खान ने एएमयू में प्रवेश दिलाने से लेकर अन्य मदद की, लेकिन आजम कांग्रेस पर निशाना साधते हुए नूर महल और नवाब खानदान के पीछे पड़े रहे। पिछले चुनाव के बाद इस बार भी न लड़ पाने के पीछे बेगम आजम फैक्टर ही मानती हैं।